Tarique Anwar Champarni
भारत को आज़ादी मिल चुकी थी. पलायन का दौर जारी था. भारत के मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे और पाकिस्तान के सिक्ख और हिन्दू भारत पलायन कर रहे थे. इसी बीच भारत में भयंकर साम्प्रदायिक दंगा हुआ. गाँधी जी नीलोखेड़ी में उपवास पर थे. जब स्थिति सामान्य हुई तो गाँधी जी दिल्ली वापस लौटे. दिल्ली की स्थिति ऐसी भयावह थी की सरदार पटेल से गाँधी जी बोले "मैं तो इस दिल्ली में आसानी से घूम सकता हूँ मग़र ज़ाकिर हुसैन इस दिल्ली में नहीं घूम सकते. जबकि दिल्ली जितनी हिंदुओं की है उतनी ही मुसलमानों की है".
पाकिस्तान से आये हुए सिक्ख और हिंदु शरणार्थियों ने दिल्ली के मस्जिदों और मज़ारों पर क़ब्ज़ा कर लिया. उनको ऐसा लगा की मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बन गया है भारत के सभी स्थलों पर उनका क़ब्ज़ा है. कनॉट प्लेस की मस्ज़िद, महरौली के दरगाह और पुराना किला इत्यादि के भीतर शरणार्थियों ने रहना शुरू कर दिया.
गाँधी जी जब नावाखोली से वापस लौटे तब वह कनॉट प्लेस के मस्ज़िद, महरौली के दरगाह और पुराना किला का दौरा किये. अपने दौरे में उन्होंने शरणार्थियों से मस्ज़िद, दरगाह और किला ख़ाली करने का आग्रह किया. गाँधी ऐसे लोगों से आग्रह कर रहे थे जिनके भीतर पाकिस्तान से अपना सबकुछ लुटा और खो देने के बाद गुस्सा और नफ़रत भरा हुआ था. इसके बावजूद भी गाँधी जी ख़ाली कराने में सफ़ल हुए.
गाँधी जी जब नावाखोली से वापस लौटे तब वह कनॉट प्लेस के मस्ज़िद, महरौली के दरगाह और पुराना किला का दौरा किये. अपने दौरे में उन्होंने शरणार्थियों से मस्ज़िद, दरगाह और किला ख़ाली करने का आग्रह किया. गाँधी ऐसे लोगों से आग्रह कर रहे थे जिनके भीतर पाकिस्तान से अपना सबकुछ लुटा और खो देने के बाद गुस्सा और नफ़रत भरा हुआ था. इसके बावजूद भी गाँधी जी ख़ाली कराने में सफ़ल हुए.
उस परिस्थिति में जब शरणार्थियों के पास कुछ भी नहीं था तब दिल्ली की दर्जनों मस्ज़िद, दरगाह और किला पर से क़ब्ज़ा हटा लिया गया. जब उसी भारत में 6 दिसम्बर 1992 को एक मस्ज़िद को शहीद किया जा रहा था तब उसी गाँधी के काँग्रेस ने मौन सहमति दे दिया. दरअसल देश की जनता साम्प्रदायिक नहीं है यदि साम्प्रदायिक होती तो गाँधी जी दिल्ली में सफल न होते. साम्प्रदायिक तो यह राजनितिक व्यवस्था है
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