एक साल और बीत गया
एक साल और बीत गया - मुकुंद प्रकाश मिश्र
एक साल और बीत गया पतझर वन की तरह सुखी नदी की तरह प्यशे पंक्षी की तरह बिन फल के पेड़ की तरह सुनसान में उड़ती चील की तरह अब तुम नहीं हो सैयद अब तुम्हारी यादे भी नहीं है अब तुम्हारे आने की आश भी नहीं है उम्मीद थी की तुम आ जाते काश होती तुमसे ढेर साड़ी बाते रहता हाथो में हाथ। सायद तुम सोचती होगी इतिहाश फिर दोहराएगा और मुझे तुम तक खीच लाएगा लेकिन तुम समझ लो इतिहाश कभी दोहराता नहीं बिता कल वापश आता नहीं बस ये दिल बहलाने की बात है मेरे सामने आज भी तुम्हारा दोस्ती की तरफ बढ़ाया हाथ है। लेकिन आज न है कोई अपना न ही तुम्हारा साथ है।
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