ग्रामीण क्षेत्र में चल रहे निजी विद्यालयो द्वारा अभिभावकों का शोषण किया जा रहा वही नौनिहालों के भविष्य से खेला जा रहा और बिभाग द्वारा किसी प्रकार का कोई कार्यवाई नही किया जा रहा । एक तरफ तो सभी विद्यालय खुद को बेहतर बता खुद अपनी पीठ थपथपा रही जबकि विद्यालयों के शिक्षण कार्य में लगे शिक्षक की गुणवत्ता और क़ाबलियत भी एक जाँच का विषय है और शिक्षक भी क्या करे जब उन्हें एक मनरेगा के दिहाड़ी मजदूर के मुताबिक भी मेहनताना न मिले तो फिर कैसे शिक्षक मिलेंगे आप भी अनुमान लगा सकते । दूसरी तरफ बच्चों को स्कूल की गाड़ियों में ठूस कर लाया ले जाया जाता है जिस गाड़ी में 8 से 10 की बैठने की व्यवस्था है उसमें 20 बच्चे मावेसी की तरह ठूसा जा रहा जबकि उन गाड़ियों का रोड टैक्स भी सरकार को नही दिया जाता अधिकतर गाड़ियों को तो नम्बर भी नसीब नही बस$ बच्चे है सावधान $ का स्लोगन लिखा मिलेगा मिला जुला कर येन केन प्रकार स्कूल संचालकों को पैसा आना चाहिए ?
No comments:
Post a Comment