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Thursday, 24 November 2016

खुलेआम हो रहा है शिक्षा के अधिकार कानून का हनन बच्चे भूमि पर बैठने को मजबूर

 खुलेआम हो रहा है शिक्षा के अधिकार का कानून हनन
बच्चे भूमि बैठने मजबूर


भारत मे लोकतांत्रिक भावना को ऐकीकृत व मजबूत करने का आधार शिक्षा ही है लेकिन भूमंडलीकरण व औधोगिकीकरण के इस युग मे कथित व्यावसायिक शिक्षा के विकास से शिक्षा अपने लक्ष्य से भटक गयी है |आज के दौर मे शिक्षा इतनी महगी हो गयी है कि आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार के बच्चे स्कूल की दहलीज पर पहुंच ही नही पातें है | सरकारी विधालयों मे पढ़ाई लिखाई या अन्य व्यवस्था का जो हाल है उससे गुणात्मक शिक्षा की उम्मीद नही की जा सकती है | हम बात कर रहे है शिवहर जिले के तरियानी प्रखंड के राजकिय मध्य विधालय बंकुल की | जहाँ बच्चे आज भी बोड़ा बिछा कर भूमी पर पर बैठ कर पढ़ाई करने को मजबूर है | बात केवल इस सरकारी स्कूल की नही है ये हाल शिवहर जिले या यूँ कहे बिहार तथा भारत के बहुत सारे स्कूलो की भी है | एक तरफ सरकार आर्दश स्कूल बनाने की बात करती है तो दुसरी तरफ बच्चों को बैठने के लिए बेंच टेबुल की भी व्यवस्था नही कर पाती है | ऐसी व्यवस्था रहने के बाद भी गरीब बच्चो की मजबूरी है कि वे सरकारी विधालय के अलावा कही और पढ़ने जाने की कल्पना भी नही कर सकते है | क्यो की निजी विधालय के प्रबंधक धनोपार्जन मे लगे हुए है |प्राईवेट स्कूलो मे दाखिला हिमालय फतह करने के समान है | देश मे प्राईवेट स्कूलो मे दाखिला की कवायद इतनी संघर्षशील है कि कई बार तो अभिभावको को लगता है कि वे बच्चे का दाखिला स्कूल मे नही बल्कि मेडिकल इंजिनियरिंग या प्रबंध संस्थानो मे करा रहें है | सरकार से अपील है कि वह सरकारी स्कूल की व्यवस्था पर ध्यान दे साथ ही साथ गरीबो के बच्चे भी पढ़ लिख सके इसकी गारंटी करें | ...............................................................मुकुन्द प्रकाश मिश्र

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