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Wednesday, 23 November 2016

मिले शिवहर के युवा कवी रक्षित राज से और उनकी कुछ रचनाये


मिले शिवहर  के युवा कवी रक्षित राज  से और उनकी   कुछ  रचनाये।
लब उठाकर भावनाओ को
चला आकाश करने
मैं उड़ा हूँ नीड़ से तो
बस तुम्हें ही पास करने
की नियंता से ये कह दो
की नियति को बदल ले
मेरे पंखो की नीयत है
नभ पटक दूँ मैं धरा पर

इन्द्र से जाकर के कह दो....
स्वयं के अरमान को
गिरेबान में टाँके रखेगा
वरना ठाना युद्ध वो तो
फिर प्रलय ये जग झकेगा
याचना का क्या कोई तब मोल होगा ?
जी,नही जीवन-मरण का बोल होगा
याचना स्वीकृत उसका किया है जाता
जो समझता नही खुद को विधाता
आ रहा हूँ मैं शत् कोटि अनल आधार लेकर
देश में चहुँओर फैली हुई हाहाकार लेकर
कह दो सुरा और सुन्दरी ले
भाग जाए वो भिखारी
जानता अच्चयुत भी कितनो की जीवन हमने ताड़ी
वज्र को तिनका समझ के फेंक देंगे
धन-संपदा कंकड़ समझ के फेंक देंगे
हिम सा पर्वत खड़ा जो दरमयां है
आज उसको सुर्य पर ही सेंक देंगे
इन्द्र पौरूषता को तेरी धुक दूँगा
मैं सकल सम्राज्य ही तब फूँक दूँगा

2. जाकर कहो सम्राट से,मैं आ गया हूँ
हाँ,मैं प्रलय का एक लय,छा गया हूँ
बोल दो उसको,खुद का बोध कर ले
फिर दधिचि अस्थियो पर शोध कर ले
जाकर कहो सम्राट से यम आ गया है
अमरत्व फुलता है अगर उसमें तो
कह दो ओखली में धर के चुर देंगे
सावधान ! हो जाओ सारे सुर
तुमको ना अबकी कोई पुर देंगे
शांति की लालसा है पुरे जग को
शांति मगर ऐसे आती नही है
जब तक बहे ना सम्राट का खुन
मेहनत कौड़ी भी पाती नही है
रात दिन धुप में झुलसे हम
अर्जित कौड़ीयो से हवन भी करे हम
और हविस को हवस कर के
अप्सराओ के बाँहो में तू झुले तम
जाकर कहो सम्राट से,विद्धवंस होगा
हवन-यग्य क्या ???
स्वर्ग में भी ना उसका अंश होगा

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