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Monday, 22 September 2025

बिहार में भ्रष्टाचार और कुप्रथा : विकास की सबसे बड़ी बाधा

बिहार में भ्रष्टाचार और कुप्रथा : विकास की सबसे बड़ी बाधा

बिहार, जो अपनी ऐतिहासिक धरोहर, संस्कृति और ज्ञान की परंपरा के लिए जाना जाता है, आज भी भ्रष्टाचार और कुप्रथाओं की जकड़न से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है। समाज और प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर फैली यह समस्या न केवल विकास की गति को धीमा करती है, बल्कि जनता के विश्वास को भी कमजोर बनाती है।

भ्रष्टाचार : व्यवस्था की सबसे बड़ी बीमारी

बिहार में भ्रष्टाचार केवल सरकारी दफ्तरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी सेवाओं तक गहरी जड़ें जमा चुका है।

नौकरी और भर्ती प्रक्रिया में घोटाले

विकास योजनाओं के धन का दुरुपयोग

पंचायत और स्थानीय निकायों में रिश्वतखोरी
इन सब कारणों से जनता का सरकारी व्यवस्था से भरोसा उठता जा रहा है।


कुप्रथाएँ : समाज की जंजीरें

भ्रष्टाचार के साथ-साथ सामाजिक कुप्रथाएँ भी बिहार की प्रगति में बाधक हैं।

दहेज प्रथा आज भी बेटियों पर बोझ बनी हुई है।

जातिवाद और भेदभाव समाज को बाँटते हैं।

अंधविश्वास और अशिक्षा लोगों को जागरूक होने से रोकते हैं।
ये कुप्रथाएँ न केवल सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करती हैं, बल्कि युवा पीढ़ी को भी सकारात्मक सोच और नवाचार से दूर ले जाती हैं।


परिणाम : पिछड़ता विकास

जब भ्रष्टाचार और कुप्रथाएँ मिलकर किसी राज्य को जकड़ लेती हैं, तो वहाँ विकास की योजनाएँ केवल कागज़ों पर ही रह जाती हैं।

सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रभावित होती हैं।

शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी प्राथमिक ज़रूरतें पूरी नहीं हो पातीं।

प्रतिभाशाली युवाओं को पलायन करना पड़ता है।


समाधान की राह

पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना होगा।

शिक्षा और जागरूकता से कुप्रथाओं को चुनौती दी जा सकती है।

युवाओं की भागीदारी और तकनीक का इस्तेमाल भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में अहम होगा।

समाज को यह समझना होगा कि भ्रष्टाचार और कुप्रथाएँ मिलकर विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा हैं।